Sunday, 10 January 2021

हजरत आदम अलैहिस्सलाम को इल्म कैसे आता हुआ?

 हजरत आदम अलैहिस्सलाम और दूसरे फ़रिश्ते आदम की खिलाफ़त-


जैसा कि पहले बयान किया गया है, जब अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को पैदा करना चाहा तो फ़रिश्तों को खबर दी कि मैं जमीन पर अपना ख़लीफ़ा बनाना चाहता हूं जो एख्तियार और इरादे का मालिक होगा और मेरी ज़मीन पर, जिस किस्म का तसर्रुफ़  (इस्तेमाल का हक हासिल) करना चाहेगा, कर सकेगा और अपनी जरूरतों के लिए अपनी मर्जी के मुताबिक काम ले सकेगा, गोया वह मेरी क़ुदरत और मेरे तसरुफ (इस्तेमाल) व अख्तियार का 'मज़हर' होगा। 

फ़रिश्तों ने यह सुना तो हैरत में रह गए और अल्लाह के दरबार में अर्ज किया कि अगर इस हस्ती की पैदाइश की हिक्मत यह है कि वह दिन-रात तेरी तस्वीह व तहलील में लगा रहे और तेरी तक़दीस और बुजुर्गी के गुन गाए तो इसके लिए हम हाजिर हैं, जो हर लम्हा तेरी हम्द व सना करते और बे-चून व चरा तेरा हुक्म 'बजा लाते हैं। हम को तो इस 'खाकी' से फ़िला व फ़साद की बू आती है। 

ऐसा न हो कि यह तेरी जमीन में खराबी और खूरेजी पैदा कर दे? ऐ अल्लाह! तेरा यह फैसला आखिर किस हिक्मत पर मब्नी है? 


बारगाहे इलाही से एक तो उनको यह अदब सिखाया गया कि मख्लूक को मालिक के मामलों में जल्दबाजी से काम न लेना चाहए और उसकी जानिब से हक़ीक़ते हाल के जाहिर होने से पहले ही शक व शुब्हा को सामने न लाना चाहिए और वह भी इस तरह कि इसमें अपनी बरतरी और बड़ाई का पहलू निकलता हो, कायनात का पैदा करने वाला इन हक़ीक़तों को जानता है, जिनको तुम नहीं जानते और उसके इल्म में वह सब कुछ है, जो तुम नह, जानते। 




आदम अलैहिस्सलाम की तालीम (इल्म का सिखाना) और फ़रिश्तों का इज्ज़ का इक़रार


इस जगह फ़रिश्तों का सवाल इसलिए न था कि वे अल्लाह तआला से मुनाजरा या उसके फैसले के मुताल्लिक मूशगाफ़ी करें, बल्कि वे आदम अलैहिस्सलाम की पैदाइश का सबब मालूम करना चाहते थे और यह कि उसको ख़लीफ़ा बनाने में क्या हिक्मत है? 

उनकी ख्वाहिश थी कि इस हिक्मत का राज़ उन पर भी खुल जाए, इसलिए उनके तर्जे अदा और मक्सद की ताबीर में कोताही पर तंबीह के बाद अल्लाह तआला ने यह पसन्द फ़रमाया कि उनके इस सवाल का जवाब जो जाहिर में हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की तहकीर पर मब्नी है, अमल व फेल के जरिए इस तरह दिया जाए कि उनको अपने आप आदमी की बरतरी और अल्लाह की हिक्मत की बुलन्दी और ऊंचाई को न सिर्फ़ मानना पड़े, बल्कि अपनी दरमांदगी और इज्ज का भी बदीही तौर पर मुशाहदा हो जाए, इसलिए हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को अपनी सबसे बड़ी मर्तबे वाली सिफत 'इल्म' से नवाजा और उनको चीजों का इल्म अता फरमाया और फिर फ़रिश्तों के पेश करके इर्शाद फरमाया कि तुम इन चीजों के बारे में क्या इल्म रखते हो? 

उनके पास इल्म न था, तो क्या जवाब देते? मगर अल्लाह की दरगाह से कुर्ब रखते थे, समझ गए कि हमारा इम्तिहान मक्सूद नहीं है, क्योंकि इससे पहले हमको इसका इल्म ही कब दिया गया है कि आजमाइश की जाती, बल्कि यह तंबीह मकसूद है कि 'ख़िलाफ़ते इलाहिया का मदार तस्वीह व तहलील की कसरत और तदीस व तम्जीद पर नहीं बल्कि 'इल्म' नामी सिफ़त पर है, इसलिए कि इरादा, अख्तियार, कुदरत व तसर्रुफ़ और कुदरत का अख्तियार या दूसरे लफ्जों में यों कहिए कि हुकूमत इल्म की जमीनी सिफ़त के बगैर नामुम्किन है।

 

 जबकि आदम अलैहिस्सलाम को अल्लाह तआला ने अपने इल्म की सिफ़त का मुकम्मल मज्हर बनाया है तो बेशक वही अरजी ख़िलाफ़त का हकदार है, न कि हम और हक़ीक़त भी यह कि अल्लाह के फ़रिश्ते अपनी जिणेदारियों के अलावा हर किस्म की दुन्यवी ख्वाहिशों और जरूरतों से बे-नियाज हैं। इसलिए वे उनके इल्म को भी नहीं जानते थे और आदम को चूंकि इन सबसे वास्ता पड़ता था, इसलिए उनका हाल इसके लिए एक फ़ितरी बात थी जो रब्बुल-आलमीन की कामिल रबूबियत की बक्शिश से अता हो और उसको वह सब कुछ बता दिया गया हो जो उसके लिए ज़रूरी था। 



हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को इल्म की सिफ़त से इस तरह नवाजा गया कि फ़रिश्तों के लिए भी उनकी बरतरी और खिलाफ़त के हक के इकरार के अलावा कोई रास्ता न रहा और यह मानना पड़ा कि अगर हम फ़रिश्ते जमीन पर अल्लाह के ख़लीफ़ा बनाए जाते तो कायनात के तमाम भेदों को जानते होते और कुदरत ने जो ख़वास और उलूम दिए हैं, उनसे एक साथ वाकिफ़ होते, इसलिए कि हम न खाने-पीने के मुहताज हैं कि जमीन में दी गई रोजीऔर खजानों की खोज करते, न मरज़ का ख़ौफ़ कि किस्म-किस्म की दवाओं, चीजों की ख़ासियतों, कीमियाई मिलावटों, तबई चीज़ों और आसमानी बातों  के फ़ायदे, डाक्टरी ईजादों, नफ़्सानी और वज्दानी मालूमात और इसी तरह के बहुत से और क्रीम से और क्रीमती उलूम व फुनून के भेद और उसकी हिक्मतों को जान सकते। बेशक यह सिर्फ़ हज़रत इंसान के लिए मौजूं था कि वह जमीन पर अल्लाह का ख़लीफ़ा बने और उन तमाम हक़ाइन, मआरिफ़ और उलूम व फुनून से वाकिफ़ होकर नियाबतो इलाही का सही हक़ अदा करे।

No comments:

Post a Comment

Duniya Ki 3rd Sabse Badi Aur Aalishan Masjid

 Duniya Ki 3rd Sabse Badi Aur Aalishan Masjid Jo Alziria Ke Alzair Shahar Me Hai Jaha 70 Acre Me Banayi Gayi Hai Jaha 1Lakh 20 Hajar Log Nam...