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हजरत मौलाना मोहम्मद यूसुफ रह० की तरफ से 1950 में भेजी जाने वाली जमाअत की कारगुजारी
रवानगी
दूसरी आज़माइश
निज़ामुद्दीन मर्कज से जद यह पैग़ाम पहुंचा तो हमने यहां से अपना सफ़र शुरू किया, दस दिन तक मुख्तलिफ़ मुक़ामात पर काम करते हुए हम 'अरूती' पहुच गये । इस जगह एक बहुत बड़ी मस्जिद थी जो वीरान पड़ी थी। हम इसमें ठहर गये। इस जगह पर पाकिस्तान से आये हुये सिख आबाद थे। जब इनको हमारा पता चला तो यह सिख बन्दूकें और राइफ़लें लेकर मस्जिद में आ गये और हमें क़त्ल करने को आमादा हो गये। जब हमने यह हाल देखा तो कहा कि तुम हम को क़त्ल तो करोगे ही, हमारी एक बात मान लो कि हमें क़त्ल करने से पहले नमाज़ पढ़ लेने दो, इस पर वह आमादा हो गये हमने नमाज़ पढ़नी शुरू की और नमाज के अन्दर ही हम रो रहे थे और अल्लाह तआला से मदद मांग रहे थे कि इन जालिमों ने नमाज की ही हालत में बन्दूकों ये गोलियां बरसानी शुरू कर दी। तमाम साथी लहूलुहान हो गये, हर साथी के जिस्म को गोलियां चीर कर पार हो चुकी थीं और मस्जिद का सहन खून से रंगीन हो गया था। अमीर साहब के पांव में से चार गोलियां पार हो गयी थीं अल्लाह की शान खुद ब खुद गोलियां चलना बन्द हो गयी । हमारे साथियों में से कुछ बेहोश थे और कुछ होश में थे।
दूसरी गैबी मदद
जब इन सिखों ने देखा कि बंदूकों से फ़ायर बन्द हो गये हैं तो वह हमारे पास आये और कहने लगे कि तुम यह क्या मन्तर पढ़ रहे हो कि हमारी बंदुकं खुद व खुद बन्द हो गयीं हम फ़ायर करना चाहते हैं मगर बंदूक नहीं चलनी । हमने कहा कि हम न कोई मंतर वगैरह पढ़ते हैं और न ही हम मंतर वगैरह जानते हैं । हम तो उस मालिक का कलाम पढ़ रहे हैं जिसके क़ब्ज़े में हमारी जान है । वही हमारी जान का मुहाफ़िज़ है, मौत और ज़िन्दगी उसके कब्जे में है। हम उसकी इबादत करते हैं और उसी से दुआ करते हैं वही हमारा खालिक व मालिक है । यह सुन कर वह सब के सब चले गये। सिखों पर असर हम सब साथियों ने कपड़े जला कर अपने ज़ख्मों को भरा और तमाम रात इसी हाल में गुजार दी। सुबह दिन निकलने पर वही सिख आये और अपने साथ एक डाक्टर को लाये, उसने हमारे जख्मों पर मरहम पट्टी की और एक बाल्टी भी लाये जिसमें दूध था, और हम सब को दूध पिलाया और कहने लगे कि हम से गल्ती हुई है अब तुम यहां से चले जाओ एक सिख हमारी रहबरी के लिए हमारे साथ चला, जो मुसलमानों को बुलाता और हम से मिलवाता बात कराता, यह सिख हमारे साथ पांच दिन रहा। और पंजाबी जबान में इसने छः नम्बर लिखे और याद भी किये कलमा नमाज़ के बारे में हम से पूछता रहा, इसके जाने के बाद हम इस इलाके में छ दिन तक काम करते रहे। ह
हमारी गिरफ्तारी
यहां से हमारी जमाअत हिजराबाद की जामा मस्जिद में पहुंच गई। इस मस्जिद के एक हिस्से में हुकूमत ने महकमा घर बसाव गुड मिशन कायम किया. हुआ था। इस महकमे वालों ने हमारे नाम लिख लिये और पुलिस को खबर कर दी। उनकी रिपोर्ट पर पुलिस आ गयी और हमें गिरफ्तार कर लिया और हिजराबाद से बाहर एक बहुत बड़ी हवेली थी जिसकी चार दीवारी थी। उसके अन्दर एक कुआ था। इन्क़लाब के जमाने में यहां पर मुसलमानों का काफ़ला आकर ठहरा था, मुसलमानों पर हमला करके सब को क़त्ल कर दिया और उनकी लाशों को, उस हवेली के अन्दर जो कुंआ था उसमें डाल दिया था।
हम को इस हवेली के अन्दर बन्द करके दरवाजे में ताला लगाया तो हम को प्यास लगी। हमने इस कुएं में से पानी निकालने के लिये जब बाल्टी डाली, तो बाल्टी में गला मड़ा बदबू- दार पानी आया और हमने मजबूरी की हालत में इमी से अपनी प्यास बुझाई । छः दिन हम इसी हवेली में भूखे-प्यासे पड़े रहे ।
छ: दिन के बाद पुलिस वालों ने हवेली का दरवाजा खोला तो को जिदा देख कर हैरान रह गये । क्योंकि उनका अन्दाज़ा था कि यह लोग भूखे-प्यासे से मर जायेंगे और फिर इन को भी इसी कूंआ में फेंक देंगे। पुलिस वालों ने हवेली के पास रहने वालों से पूछा कि तुमने हवेली का दरवाजा तो नहीं खोला । उन्होंने कहा कि 'नहीं।' उसके बाद उन्होंने हमें हवेली से निकाला और कहने लगे कि हुकूमत का हुक्म था, इसलिए हमने तुमको यहां बन्द कर दिया था। हमने तुम्हारे अन्दर कोई ग़लत बात नहीं देखी, लिहाजा अब तुम यहां से पहाड़ी नाहन के इलाके में चले जाओ। हम यहां से पहाड़ी नाहन के इलाके में आ गये ।
तीसरी आज़माइश
इस इलाके में हमने पन्द्रह दिन काम किया और मुरतिदों को दोबारा इस्लाम में दाखिल किया। इस इलाके के मुर्तिदों को हमारी बातों से बड़ी हौसला अफ्ज़ाई हुई और काफ़ी तायदाद में मुरतिद दोबारा मुसलमान हो गए। मगर इनमें से जो मुनाफ़िक किस्म के लोग थे, उन्होंने पुलिस को खबर कर दी कि इस किस्म के लोग आये हुये हैं, जो मुरतिद मुसलमानों को दोवारा इस्लाम में दाखिल कर रहे हैं । इस रिपोर्ट पर पुलिस आ गई और हम सब को गरफ्तार करके दरिया जमना के पुल मुक़ाम ताजे वाला पर ले गये। रास्ते में हमें बन्दूकों की बटों से मारते और गालियां देते । जब हम मुक़ाम ताजे वाला के पुल पर पहुंच गये, तो उन्होंने हमारी लाशी ली और पैसे वगैरा सब छीन लिये और हमारे कपड़े वगैर व उतरवा लिये और एक-एक करके सब को दरिया में फेंक दिया ।
उस वक्त दरिया में बहुत पानी आया हुआ था। दरिया के किनारे जो पांच गांव आबाद थे वह सारे गांव मद्दा, लेशपूर, कढी, अरुती वगैरा बह गये थे। दरिया में फेंके जाने के बाद जब हम ने इधर उधर देखा तो पानी के अलावा कुछ दिखाई 'न दिया। हमारे सब साथी बेहोश हो गये।
तीसरी गैबी मदद
हम इस बेहोशी की हालत में बहते चले जा रहे थे कि अल्लाह पाक की शान कि दरिया के अन्दर एक बहुत बड़ा कीकर का पेड़ पड़ा हुआ था। हम सब साथी उस पेड़ में उलझ गये। जिस वक्त हम पेड़ में उलझे हुये थे तो एक आवाज़ सुनाई दी, कोई कह रहा है कि हाय मेरा मुव्हान खां रह गया। जब यह आवाज़ कान में पड़ी तो देखा कि सब पेड़ में उलझे पड़े हैं और यह आवाज़ हमारे एक साथी की थी, जो बेहोशी की हालत में अपने बेटे के लिए कह रहा था। मैंने मियांजी सुलेमान अमीर जमाअत से कहा कि यह वक्त रिश्तेदारों को याद करने का नहीं है, बल्कि उस पाक जात को याद करने का है, जिसने हमें अब तक इन हालात से बचाया और जिंदा रखा और इस बात की दुआ करो कि अल्लाह पाक मौत दे तो ईमान पर दे और इस्लाम पर कायम रखे और अगर इस पाक जात ने हम से अपने दीन का काम लेना है, तो अल्लाह पाक हम को अपना जरिया बना कर पूर्वी पंजाब के तमाम मुतिदों को दोबारा इस्लाम की दौलत से. नवाज़ देगा। यह हमारा ईमान और यक़ीन है, अल्लाह पाक हमारे साथ है । जिस जात ने अब तक बचाया है हमसे अपने दीन का काम लेगा।
चौथी आज़माइश
और अल्लाह की मदद
'जब तुम पेड़ का सहारा छोड़ दो और अल्लाह के भरोसे पर दरिया के किनारे की तरफ़ चलो।' यह बात हो ही रही थी कि दरिया में एक जबरदस्त लहर आयी और हम को बहा कर ले गई और वह पेड़ भी दरिया की लहरों में बह गया। फिर हमें किसी का कोई पता न चला । अल्लाह पाक बेहतर जानते हैं कि उस जात ने किस तरह बचाया और हम सब को दरिया से निकाल कर सूखी जमीन पर फेंक दिया। हालात यह थे कि जिस जगह हम रेत पर पड़े थे, वहां से दरिया का रुख दूसरी तरफ़ हो जाता है। यानी दरिया की एक शाख खद्दर आबाद की तरफ़ और दूसरी बिजनौर की तरफ़ जाती है, दरमियान में सूखी रेत है। इस जगह से आगे अब्दुल्लाहपुर खो के मुकाम पर एक पुल है, उस पुल के नीचे लोहे की जालियां लगी हुई हैं और यहां पर पुलिस चौकी भी है। एक अस्पताल भी है अगर कोई लाश वगैरा बहकर आये तो इन जालियों में अटक जाये और उसको निकाल लिया जाये और अगर कोई जिदा बच जाये, तो उसे अस्पताल में दाखिल करा दिया जाये। चुनांचे जब पुलिस ने हमें दरिया में फेंका था, पुर के मुक़ाम पर खबर कर दी थी कि हमने बारह मुसलमानों को हमें दरिया में फेंका था, उसने अब्दुल्लाह दरिया में फेंका है, इन की लाशों को मत निकालना, बल्कि आगे दरिया में बहा दिया जाये। अल्लाह की शान कि उसने हमें दरिया - से निकाल कर पहले ही रेत पर डाल दिया था। दरिया के किनारे मछली पकड़ने वाले और धोबी कपड़े धोने वाले मौजूद थे, जो हम को देख कर दूर हट गये । जब सूरज की गरमी से हमारे जिस्म गर्न हुये तो होश आया, तो देखा कि हमारे आंख, कान, नाक में मिट्टी भरी हुई थी और हमारे तमाम साथियों के जिस्म अक्सर नंगे थे
हमने अपनी उंगलियों से अपने नाक, कान ओर आंखों की मिट्टी निकाली और सब एक जगह जमा हो गये। क्योंकि हम सब साथी एक मुरब्बा जमीन के फ़ासले से जगह-जगह पड़े हुये थे। कपड़े फाड़ कर सतर छुपाया इस वक्त दिन के बारह बजे थे और जुमे का दिन था। हमें जुमेरात को बारह बजे फका गया था। यानी चौबीस घंटे हम पानी में रहे और हमारे जिस्मो पर जो ज़ख्मों के निशान थे, वे पानी की वजह से सफ़ेद हो गये थे।
अल्लाह पाक ने गैबी मदद फ़रमाई कि हमारे एक साथी ने कपड़ों की गठरी कमर से बांध रखी थी। खुदा की शान इन पुलिस वालों ने इस साथी को कपड़ों समेत दरिया में फेंक दिया था और यह गठरी उसकी कमर से बंधी हुई थी। इसमें दो-चार कुर्ते और एक पगड़ी थी। हम सब साथियों ने चीज फाड़-फाड़ कर अपने सतर ढांपे और यहां से खिजराबाद की जामा मस्जिद में पहुंच गये । जुमा का दिन था। इस मस्जिद में देहात के लोग जुमा की नमाज़ पढ़ने के लिए आये हुये थे। यह लोग हमें देख कर घबरा गये और हमें मस्जिद के अन्दर दाखिल नहीं होने दिया। कहने लगे, 'तुम लोग कौन हो।', मगर हम जबरदस्ती मस्जिद में दाखिल हो गये और मस्जिद के एक कोने में बैठ कर अल्लाह के जिक्र में मश्गूल हो गये। उन लोगों ने उन्हीं पुलिस वालों को, जिन्होंने हमें दरिया में फेंका था, खबर कर दी कि इस किस्म के ग्यारह आदमी हैं और जामा मस्जिद खिजराबाद में मौजूद हैं। उन्होंने फौरन दो सिपाही भेज दि ताकि मस्जिद के अन्दर किसी को बाहर न निकलने दें। इन दोनों सिपाहियों ने मस्जिद के दरवाजे पर पहरा लगा दिया और कहा कि मस्जिद के अन्दर जिस कदर लोग हैं, सब मस्जिद के अन्दर ही रहें, अगर कोई बाहर आयेगा तो हम उसको गोली मार देंगे। इस हुक्म को सुन कर वे सब लोग घबरा गये और हमें बुरा भला कहने लगे, यह कहा गये, इन्होंने अपने साथ हमें भी मुसीबत में फंसायां है न मालूम अब हमाग क्या हश्र होगा।
सिखों का मुसलमान होना
थाड़ी देर के बाद और पुलिस आ गयी, जिनमें इंस्पेक्टर करतार सिह, सब-इंस्पेक्टर करम. सिंह, दुग्गा प्रसाद जीसा लाल और समीर सिंह वगैरा थे। उन्होंने मस्जिद के अन्दर दाखिल होकर तमाम मजमे को एक जगह जमा कर लिया। इनमें हम भी शामिल थे। इंस्पेक्टर करतार सिंह ने सबके सामने तमाम हालात बयान किए। जिस तरह हम को दरिया में डाला था, कहने लगे कि हमने इन के साथ बहुत जुल्म किए, इन सबको नंगा करके दरिया में डाला था कि यह खत्म हो जाएं और दरिया में डूब कर मर जायें । अजीब माजरा है, कि यह कैसे बच गये, मालूम होता है कि इन के साथ कोई जबरदस्त ताकत है, जो इन को हर जगह, हर हाल में बचा रही है । आज हम भी उसी गैबी ताकत पर, जो इन की मुहाफ़िज़ और निगहबान है, ईमान लाते हैं और इस्लाम में दाखिल होते हैं। उन्होंने हम से कहा कि अब तुम हम को इस्लाम में दाखिल कर लो, हमने इस मजहब के अन्दर खुली गैबी मदद देख ली है ।
हमने उनसे कहा कि हम तो अनपढ़ हैं. हम खुद दीन सिखने के लिये निकले हैं, इस मजमे के अन्दर आलिम और दीनदार लोग हैं, जिनमें पानीपत के इमाम मस्जिद और इलाके के जिम्मेदार मुहम्मद तकी साहब थे उन्होंने इनको गुस्ल दिला कर कलमा पढ़ाया और पूरे तरीके से दीन इस्लाम में दाखिल कर लिया। उन्होंने कहा कि अब तुम बिल्कुल आजाद हो, तुम पर आज से कोई पाबन्दी नहीं है।
नुसरते खुदावन्दी का नज़ारा
हमारी आजादी और सिखों के इस्लाम कुबूल करने के बाद उन्होंने हमारे लिए कपड़े मंगाये और दूध, मिठाई और खाना वगैरा खूब खिलाया। जिस वक्त हम खाने पर बैठे, उस वक्त छ: बज चुके थे। गोया तीस घण्टे के बाद अल्लाह पाक ने हमें खाना खिलाया और अपनी कुदरत से यह तीस घण्टे का अरसा अपनी हिफ़ाज़त में रख कर पूरा फ़रमाया और हमारा यह अशरा बड़े एजाज़ व इकराम में गुजरा। दूर-दराज से मुस्लिम और गैर-मुस्लिम हमारी जियारत को आते थे और दुआएं कराते थे। बहुत से मुरतिद खुद-ब-खुद दोबारा इस्लाम में दाखिल हो गये।
हज़रत जी रह० के इर्शाद पर निज़ामुद्दीन वापसी
यहां से हमने अपनी कारगुजारी तब्लीगी मर्कज़ को रवाना की मियाजी दीन मोहम्मद को रकम वगैरह देकर हमारे पास भेजो और फरमाया में आज जी के साथ वापस निजामुद्दीन मरकज आ जाएं
5=15 महीने का अरसा गुजार कर हम भी आज के साथ मरकज आ गए और हजरत जी मौलाना यूसुफ ने तब शेर से हमारी कारगुजारी सुनीं और खूब दुआ की
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