Friday, 8 January 2021

जलालुद्दीन लोडेर बरन्तून ने इस्लाम कैसे कबूल किया

 












जलालुद्दीन लोडेर बरन्तून

Sir.Jalaulddin louder Brunton (1) इन्हीं ने आक्सफोर्ड विश्व विद्यालय में शिक्षा प्राप्त किया और अंग्रेज़ के बहुत बड़े लोगों मेसे थे तथा इनको जगत्प्रसिद्ध मिली थी. में इस शुभ अवसर पर बहुत ही प्रशस्त एवं प्रसन्न हूँ कि मुझे संक्षिप्त शब्द मैं अपने इस्लाम स्वीकार करने का कथा बयान करने का अवसर मिला है। कई वर्षों से मैं इस बात पर ध्यानपूर्वक सोच रहा था कि अनेक निर्वाचित भले लोगों के सिवाय सारे लोगों को प्रलोक दराड दिया जायेगा | इस से हमें काफी विस्मय एवं शंका लगा रहता था | अतः धीरे धीरे हमें पालनहार के अस्तित्व का पक्का विश्वास हो गया फिर मैं दूसरे धर्मों का अध्ययन करने लगा जिस से मेरी विस्मय और बढ़ने लगी | दूसरे धर्मों के अध्ययन से यह लाभ हुबा कि वास्तविक पालनहार पर मेरा विश्वास बढ़ता गया और वास्तविक पालनहार की उपासना तथा उसके मार्ग पर चलने का उल्लास एवं अभिलाषा अधिक से अधिक हो गया ।  का कहना है कि ईसाई आस्था का मूल इन्जील है.लेकिन उसे पढ़ने के बाद पता चला कि उस में घृणा,पारस्परिक तथा टकराव है, तो क्या ऐसा ही सकता है कि इन्जील तथा ईसा मसीहह की शिक्षा में परिवर्तन हुवा हो? फिर दो बारह मैं पूर्ण सूक्ष्मदर्शी से इन्जील पड़ने लगा तो हमें पता चला कि इस में इस प्रकार टकराव तथा पारस्परिक है कि उसकी सीमाकरण नहीं हो सकता । मैं ने इस बात का विश्वास कर लिया कि सत्य के बारे में छान बीन करने की आवश्यकता है चाहे जितना लमबा समय लगे ताकि में बहुमूल्य मोती तक पहुंच सकू इस बासतो मैं ने अपना पूरा समय इस्लाम के पढ़ने में लगा दिया और इस्लाम के बारे में मैंने हर प्रकार की पुस्तक का अध्ययन किया | 

मैंने हर प्रकार की पुस्तक का अध्ययन किया । अंत में अंतिम संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जीवनचरित्र का ध्यान पूर्वक अध्ययन किया | जब कि इस से पहले मैं इनके बारे में बहुत ही थोडा ज्ञान रखता था, हाँ इस बात का हमें पता था कि सारे के सारे ईसाई इस अंतिम महान संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नकारने पर सहमत हैं | इसी लिये में ने अपने मन में यह ठान लिया कि  किसी विद्वेष तथा छल के अध्ययन करूँ | अतः बहुत ही थोडे समय में यह जान गया कि इस में कोई शंका नहीं कि अंतिम संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सत्य तथा अल्लाह के ओर निमंत्रण देने में सच्चे थे एवं उनका निमंत्रण भी सत्य था | तथा जो कुछ इस महान अंतिम संदेष्टा ने सारे मनुष्य के लिये प्रस्तुत किया है उसके पढ़ने के बाद यह मालूम हुवा कि इस से बढ़ कर कोई पाप एवं दोष नहीं कि इस ईश्वरभक्त मनुष्य को नकारा जाये | अरब निवासी, मूरतियों के पुजारी,हर प्रकार के अपराध करने वाले,पशुता की जीवन बिताने वाले, बात बात पर मार काट करने वालों ने इसी अंतिम संदेष्टा की निमंत्रण से मनुष्यता सीखी, और हर पाप को छोड़ कर आपस में भाई भाई होकर अपने हाथों से बनाये मूर्तियों के रूप में झूठे ईश्वरों को तोड दिया तथा एक अल्लाह को मान कर उसके पुजारी हो गये इस महान दूत की सेवा तथा महान कार्य को कोई गिन नहीं सकता | लेकिन आश्चर्य इस बात पर है कि सारे के सारे धर्म और विशेष रूप से ईसाई धर्म इस महान दूत की महिमा पर कीचड़ उछालते हैं | क्या यह दुख की बात नहीं है।

I मैने ध्यान पूर्वक मननचिन्तन किया तथा मैं मननचिन्तन कर ही रहा था कि मेरे पास मेरे एक हिन्दुसतानी मित्र मियाँ अमीरुद्दीन आये मैंने उन के साथ ईसाइयों के आस्था पर विवाद किया इस से मेर हृदय मे इस्लाम की महानता बैठ गई फिर मैं ने दृढ़ विश्वास कर लिया कि यही इस्लाम सत्य सरल,अवहेलना प्यार व महब्बत में निःस्वार्थता का धर्म है | मैं इस बात का आशा नहीं करता कि मैं अधिक दिन तक जीवित रहूंगा प्रन्तु जीवन का जो भी भाग बाकी बचा है उसको मैं इस्लाम की सेवा के लिये धर्मार्थ दान करूंगा |

No comments:

Post a Comment

Duniya Ki 3rd Sabse Badi Aur Aalishan Masjid

 Duniya Ki 3rd Sabse Badi Aur Aalishan Masjid Jo Alziria Ke Alzair Shahar Me Hai Jaha 70 Acre Me Banayi Gayi Hai Jaha 1Lakh 20 Hajar Log Nam...