हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का जन्नत में ठहरना
और हव्वा का जौजा बनना
हजरत आदम अलैहिस्सलाम एक मुद्दत तक अकेले जिंदगी बसर करते रहे मगर अपनी जिंदगी और राहत व सुकून में एक वहशत और खला महसूस करते रहे थे और उनकी तबियत और फ़ितरत में किसी मूनिस व ग़मवार की याद नज़र आती थी। चुनांचे अल्लाह तआला ने हज़रत हव्वा को पैदा किया और हजरत आदम 'अपना हमदम और साथी' पा कर बहुत खुश हुए और दिल में इत्मीनान महसूस किया। हज़रत आदम व हव्वा को इजाजत थी कि वे जन्नत में रहें-सहें और उसकी हर चीज़ से फ़ायदा उठाएं, मगर एक पेड़ को निशान-ज़द करके बता दिया गया कि उसको न खाएं, बल्कि उसके पास तक न जाएं।
हजरत आदम अलैहिस्सलाम का जन्नत से निकलना
अब इब्लीस को एक मौक़ा हाथ आया और उसने हज़रत आदम व हव्वा के दिल में यह वस्वसा डाला कि यह पेड़ जन्नत का पेड़ है। इसका फल खान जन्नत में हमेशा आराम व सुकून और अल्लाह का कुर्ब पाने की जमानत देता है और कस्में खाकर उनको बताया कि मैं तुम्हारा खैरख्वाह हूं, दुश्मन नहीं हूं यह सुनकर हज़रत आदम के इंसानी और बशरी ख्वास में सबसे पहले निस्या (भूल-चूक) ने जुहूर किया और यह भुला बैठे कि अल्लाह का यह हुक्म जरूरी था, न कि रब की ओर से कोई मश्विरा। आखिरकार जन्नत के हमेशा कियाम और अल्लाह के कुर्ब के अज़्म में लरिज़श पैदा कर दी और उन्होंने उस पेड़ का फल खा लिया।
हजरत आदम अलैहिस्सलाम और हज़रत हव्वा का लिबास से महरूम होना
उसका खाना था कि बशरी लवाज़िम (इंसानी जरूरते उभरने लगीं। देखा तो नंगे हैं और लिबास से महरूम। जल्द जल्द आदम और हव्वा दोनों पत्तों से सतर ढांक थी कि उसने ढांकने के लिए सबसे पहले पत्तों का इस्तेमाल किया। इधर यह हो रहा था कि अल्लाह तआला का इताब (ग़ज़ब) उतरा और आदम से पूछ-ताछ हुई कि मना करने के बावजूद यह हुक्म का न मानना क्यों? आदम आखिर आदम थे, अल्लाह के दरबार के मक़्बूल थे, इसलिए शैतान की तरह मुनाजरा नहीं किया और अपनी ग़लतियों को तावीलों के परदे में छुपाने की बेमतलब की कोशिश से बाज रहें। नदामत व शर्मसारी के साथ इकरार किया कि ग़लती जरूर हुई लेकिन इसकी वजह तमरुंद व सरकशी नहीं, बल्कि इंसान होने के नाते भूल-चूक इसकी वजह है, फिर भी ग़लती है, इसलिए तौबा व इस्तरफार करते हुए माफ़ कर दिए जाने की दर्ख्वात करता हूं।
हजरत आदम अलैहिस्सलाम को जमीन पर खिलाफत का हक
अल्लाह ताआला ने उनके इस उन को कुबूल फ़रमाया और माफ़ कर दिया, मगर वक़्त आ गया था कि हज़रत आदम अल्लाह की जमीन पर 'ख़िलाफ़त का हक़' अदा करें, इसलिए हिक्मत के तक़ाजे के तौर पर साथ ही यह फैसला सुनाया कि तुमको और तुम्हारी औलाद को एक तय वक़्त तक जमीन पर कियाम करना होगा और तुम्हारा दुश्मन इब्लीस अदावत के अपने तमाम सामान के साथ वहां मौजूद रहेगा और तुमको इस तरह मलकूती और तागूती दो टकराने वाली ताक़तों के दर्मियान जिंदगी बसर करनी होगी। इसके बावजूद अगर तुम और तुम्हारी औलाद मुख्लिस और सच्चे बन्दे और सच्चे नायब साबित हुए तो तुम्हारा असल वतन 'जन्नत' हमेशा की तरह तुम्हारी मिल्कियत में दे दिया जाएगा, इसलिए तुम और हव्वा यहां से जाओ और मेरी ज़मीन पर बसो और अपनी मुकर्रर की हुई जिंदगी तक उबूदियत का हक़ अदा करते रहो और इस तरह इंसानों के बाप और अल्लाह तआला के ख़लीफ़ा आदम अलैहि० ने जीवन-साथी हज़रत हव्वा के साथ अल्लाह की जमीन पर क़दम रखा।
हजरत आदम अलैहिस्सलाम के ज़िक्र से मुताल्लिक कुरआनी आयतें कुरआन मजीद
आदम के ज़िक्र से मुताल्लिक कुरआनी आयतें कुरआन मजीद में हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का नाम 25 बार पचीस आयतों में आया है। और अंबिया अलैहिस्सलाम के तज्किरों में सबसे पहला तकिरा अबुल बशर हजरत आदम का है जो नीचे लिखी सूरतों में बयान किया गय सूरः बकरः, आराफ, इसरा, कह्फ और ताहा में नाम और सिफ़तों दोनों के साथ और सूरः हजर व साद में से सिर्फ सिफ़तों के जिक्र के साथ और आले इमरान मायदा और मरयम और यासीन में सिर्फ़ ज़िम्नी तौर पर नाम (लिया गया है।
हजरत आदम अलैहिस्सलाम के किस्से में कुछ अहम इबरतें (नसीहत)
यों तो आदम अलैहिस्सलाम के वाक़िए में अनगिनत पंद और नसीहतों और मस्अलों का जखीरा मौजूद है और उनका एहाता इस मकाम पर नामुम्किन है फिर भी कुछ अहम इबरतों की तरफ़ इशारा कर देना मुनासिब मालूम होता है।
I. अल्लाह तआला की हिक्मतों के भेद अनगिनत और बेशुमार हैं और यह नामुम्किन है क कोई हस्ती, चाहे वह जितनी ही अल्लाह की बारगाह में मुक़रब हो, इन तमाम भेदों को जान जाए। इसीलिए अल्लाह के फ़रिश्ते इतिहाई मुकर्रब होने के बावजूद आदम की ख़िलाफ़त की हिक्मत के जानकार न हो सके और जब तक मामले की सारी हकीक़त सामने न आ गई, वे हैरान व परेशान ही रहे।
2. अल्लाह तआला की इनायत व तवज्जोह अगर किसी मामूली चीज़ की ओर भी हो जाए तो यह बड़े से बड़े मर्तबा और जलीलुलकद्र मंसब पर पहुंच सकती है और शरफ़ व बुजुर्गी के ओहदे से नवाज़ी जा सकती है। खाक की एक मुट्ठी को देखिए और फिर 'अल्लाह के ख़लीफ़ा' होने के मंसब पर नजर डालिए और फिर उसके नुबुव्वत व रिसालत के मंसब पर नजर डालिए, मगर उसकी तवज्जोह का फ़ैजान बख्न व इत्तिफ़ाक़ की बदौलत या हिक्मत के बगैर नहीं होता, बल्कि उस चीज़ की इस्तेदाद के मुनासिब बेनजीर हिक्मतों और मस्लहतों के निज़ाम से जुड़ा होता है।
3. इंसान को अगरचे हर किस्म का शरफ़ मिला और हर तरह की बुजुर्गी और बडप्पन नसीब हुआ, फिर भी उसकी पैदाइशी और तबई कमजोरियां अपनी जगह उसी तरह कायम और बशर और इंसान होने की वह कमज़ोरी अपनी जगह बाकी रही। असल में यही वह चीज़ थी जिसने हजरत आदम पर इस बुजुर्गी और बड़े दर्जे के होते हुए ऐसी भूल लगा दी और वस्वसे में आ गए।
खताकार होने के बावजूद अगर इंसान का दिल शर्म और तौबा की तरफ माइल हो तो उसके लिए रहमत का दरवाज़ा बन्द नहीं है और उस बारगाह तक पहुंचने में नाउम्मीदी की अंधी घाटी नहीं पड़ती। अलबत्ता खुलूस व सदाकत शर्त है और जिस तरह हज़रत आदम से की भूल-चूक की माफ़ी उसी दामन से वाबस्ता है, उसी तरह उनकी तमाम नस्ल के लिए भी अफ़्व और दुनिया की रहमत का भारी-भरकम दामन फैला हुआ है।
किसी आरिफ़ ने क्या खूब कहा है-
बाज़ आ, बाज़ आ हर आंचे हस्ती बाज़ आ
गर काफ़िर व गर्ब व बुतपरस्ती बाज़ आ।
ई दर गहे मादर गहे नाउम्मीदी नीस्त
सद बार अगर तौबा शिकस्ती बाज़ आ।
अल्लाह के दरबार में गुस्ताखी या बग़ावत बड़ी-से-बड़ी नेकी और मलाई को भी तबाह कर देती है और हमेशा की जिल्लत व घाटे की वजह बन जाती है। इब्लीस का वाकिया इबरतनाक वाकिया है और उसकी हजारों साल की इबादतगुजारी का जो हर अल्लाह के दरबार में गुस्ताख़ी और बग़ावत की वजह से हुआ, वह सैंकड़ों बार इबरत हासिल करने की चीज़ है-
गया शैतान मारा एक सज्दे के न करने से
अगर लाखों बरस सज्दे में सर मारा तो क्या मारा।
बस इबरत हासिल करो, ऐ इबरत की आंख रखने वालो!
कि किस तरह- तकब्बुर अजाज़ील रा वार कर्द ।
बजिंदाने लानत गिरफ्तार कर्द।
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