इमामे हुसैन के फ़रज़न्द इमाम ज़ैनुल
आबिदीन लोगों में खाना तक़सीम कर रहे,
एक शख्स ने कहा "आप ने मुझे पहचाना नहीं "
आप ने फ़रमाया "मैं तुझे कैसे भूल सकता हूँ जब हम करबला में कैदी थे, तूने हमें पत्थर मारा था"
उस शख्स की आँखों में आँसू आ गए उसने भर्राई हुई आवाज़ में कहा "आप फिर भी मुझे खाना दे रहे है"
आप ने फ़रमाया "उस वक़्त हम तेरे दर पे आये थे और वो तेरा सुलूक था अब तू हमारे दर पे आया है और ये आले मुहम्मद का सुलूक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ❤❤
"ऐसे होते है मुहम्मद के घराने वाले"..!!
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